नील अन्धिरिमा का वोह दिलकश धुआं, है हज़ारो ज़मन के स्याह सवाल समेटे हुए !
जवाब
हमसे कुछ देते न बने , फिर भी नज़र के गुनाह लपेटे हुए !!
इन्तेजार
है उसका जिसका किसी को इंतज़ार नहीं, की सिफर में है सब तलाशते हुए !
खामोशियो
को शिकायत है की हम कुछ बोलते नहीं, लफ्ज को अक्सर अल्फाज़ में बदलते हुए !!
ख़वाहिशे
है आवारा हमारी, वोह भी आखिरी साँसे लेते हुए !
की
हम में भी है सादगी , बस कुछ जवानी लेते हुए !!
यारो
के साथ जिंदगी के सबब लेते हुए !
कि
जिन्दा है हम दोस्ती के कश लेते हुए !!
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